असल में कुछ नहीं हूँ मैं

पहले लोग दुआ सलाम करते हैं। फिर बात करने लगते हैं। उसके बाद अपना मन बांटते हैं। अपने बारे में सब बता देने के बाद जो उनको अच्छा लगा, वह पढ़कर सुनाते हैं। हज़ार बहाने खोजते हैं फोन पर एंगेज रखने के। उनको सुनते हुए। उनसे बात करते हुए। हम भी अपना मन कह देते हैं। फिर अचानक वे लोग कहीं खो जाते हैं। उनसे पूछो तो कहते हैं कि कोई बात है। तुम न समझोगे।

इस तरह अचानक अपनी इच्छा से आये लोग, अचानक खो जाते हैं।

अच्छी बात ये है कि अब तक उन्होंने वे बातें शायद सार्वजनिक न की जो हमने उनकी बातों के बहकावे में आकर कह दी थी।

उनका शुक्रिया।
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मैं आपे से बाहर आया समंदर हूँ
मैं स्याह जादुई रात हूँ
मैं बहुत समय से भूखा शिकारी जीव हूँ
मैं श्मशान में चिता की राख में लेटा अघोरी हूँ.

अनवरत मंत्र पाठ की तरह
संभावनाएं जताता रहूँ अपने बारे में
तो भी जिन अंगुलियों में है
मेरी अंगुलियां छूने की चाहना, वे छू लेती हैं।
 
असल में कुछ नहीं हूँ मैं
हर कोई अपने स्वप्न/दुस्वप्न को छूता है और जाग जाता है।
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