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Showing posts from October, 2017

क्या होगा सोचकर

याद करते हुए एक बरस

जोगी ही बन जाएँ मगर

उसकी आमद का ख़याल

तुम्हारे लिए हमेशा

प्रिय को बदलते हुए देखकर

इतवार का स्वाद

दफ़्तर के चूहे, बिल्ली और सांप

दूर से आते हुए पिता

बिछड़ने के बाद के नोट्स

आस्ताने में दुबकी छाँव

चश्मे के पीछे छुपी उसकी आँखें

तुमसे कभी नहीं मिलना चाहिए था