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Showing posts from April, 2016

इसलिए ऐसे ही

ढलते हुए दिन की किनारी पर चलते हुए मुसाफ़िर के रुखसारों को चूमकर आहिस्ता से हवा ठहर जाती है। सुबह सीली थी दोपहर गरम ठहरी शाम के बीतने के बाद रात के पहले पहर कोई सूखी पत्ती ज़मीं पर बिखर जाती है। याद ही याद है कोई हल भी नहीं. सवालों पे लगे पैबंदों की उधड़ी सिलाई से झांक एक दूर बीते दिनों तक. जब से देखा था उसे, जब से उसे खोया है जब से भूले थे उसे जब से यादों में बसाया है. कुछ नहीं कर रहा। बस ऐसे ही बैठा हूँ। कोई वजह नहीं सो जाने की। कोई मौका नहीं है जागने का। प्याला भी रखा है और सुराही भी है। नमक लगे कुछ दाने भी रखे हैं। मगर क्यों? इसलिए ऐसे ही बैठा हूँ।

ठीक तुम्हारे पीछे - मानव की कहानियां

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एक रोज़ उसका फोन आया. उसने कहा आपकी तस्वीर बहुत अच्छी है. आपकी तस्वीर का बैकड्रॉप बेहद सुन्दर है. फिर एक रोज़ वो मेरे सामने थी. उसने कहा- केसी ! आप दीखते भी अच्छे हैं. जाने क्यों मेरे मुंह से निकला बैकड्राप के बारे में क्या ख़याल है? असल में मेरे पीछे का दृश्य किसी भी प्रकार से सुन्दर न था. ये एक छोटे से हवाई अड्डे का हिस्सा था. जहाँ पार्किंग का टाइम बचाने के लिए भागने को तैयार खड़ी कारों की कतार थी. दो चार लोगों के सिवा हर किसी की नज़रें कोई किसी न किसी खोज रही थी. मैं अपने पीछे के दृश्य बिना देखे देखते हुए उसके चहरे की तरफ लौटा तो पाया कि वह मुस्कुरा रही थी. मैंने पल भर को सोचा कि मुस्कुराने की वजह क्या है? मैंने अपने चेहरे को ऊपर उठाते हुए इशारा किया कि क्या? उसने कहा- बैकड्राप. मुझे एक दोस्त की याद आई और जयपुर का हवाई अड्डा याद आया.  सुबह तीन बजे थककर बिस्तर से उठ गया था. रात साढ़े बारह बजे जो आँख लगी थी वह दो बजे खुल गयी. पानी पीने और वाशरूम हो आने के उपक्रम के बाद कोई कितनी देर बिस्तर पर पड़ा रह सकता है. मैं रोज़ सोचता हूँ कि सुबह जल्दी उठूँगा और देर तक नेट सर्फ करूँगा. मेरा डेटा

ख़ुद को क्या कहूँ

कभी-कभी आप ऐसी तन्हाई में जीते हैं, जो बेहद तकलीफदेह होती है. इसलिए कि जिस पर भरोसा करना चाहते है. जिसकी बात का एतबार करना सीखते हैं. उसी की आत्मा में वे लोग बसे होते हैं, जिनसे आपको बेदिली है. आप उसे देखते हैं लगातार उन्हीं का फेरा देते हुए. आप बार-बार उदास हो सकते हैं. रो सकते हैं, खुद को कोस सकते हैं, चुप हो सकते हैं. आप कुछ भी कर सकते हैं. मगर आखिर में आप वही करते हैं, जो अब तक करते आये हैं. आप सर झुकाए बैठे, उसकी बातों में हामी भर रहे होते हैं. मैं कई बार सोचता हूँ कि ऐसे लोगों को क्या कहूँ, फिर सोचता हूँ ख़ुद को क्या कहूँ.