तुम जो मिलोगे इस बार तो



उदासी के झोंके ने 
गिरा दिया शाख से पत्ता 

ज़िंदगी को इतना भी यूनिक क्यों होना चाहिए कि जीया हुआ लम्हा बस एक ही बार के लिए हो. कुछ क्लोन होने चाहिए कि हम उसी लम्हे को फिर से जी सकें. एक याद का मौसम जब भी छू ले, उसी पल कोई दरवाज़ा बना लें. दरवाज़े के पीछे एक छुअन हो. एक लरज़िश हो. एक धड़क हो. इस तरह याद जब उदासी और नया इंतज़ार घोले, उससे पहले हम उसी लम्हे को फिर से बुला लें. 

जिस तरह गिरते हुए पत्ते ख़ुद को धरती को सौंप देते हैं, उसी तरह कभी हम ख़ुद को प्रेम को सौंप दें. प्रेम लुहार की तरह हमें लाल आंच में तपाकर बना देगा कोमल. किसी बुनकर की तरह बुन देगा एकसार. किसी राजमिस्त्री की तरह चुन देगा भव्य. 

वह जो दरवाज़े के पीछे अँगुलियों के रास्ते बदन में उतर आई लरज़िश थी. वह उसी एक पल के लिए न थी. उसका काम बस उतना सा ही न था. 

तुम जो मिलोगे इस बार तो पूछेंगे ये हवा क्या है, उदासी कैसी है और तन्हाई कब तक है? 

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