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Showing posts from May, 2015

कॉलर पर टँगा सफ़ेद ईयरफोन

फोन में लगे होने की जगह ईयरफोन का 3.5एमएम का जैक उसके मुंह में था। और नज़रें कहीं दूर क्षितिज में अटकी हुई थी। हालाँकि उसे मालूम था कि जीवन का अप्रत्याशित होना अच्छा है। *** उसे उन दोनों के सस्ते और अमौलिक ड्रामों के बारे में कुछ मालूम न था। उसे ये जानना न था कि वे दो और उनकी मण्डली मिलकर कैसा रूठने-मनाने, जीने और मर जाने का सजीव प्रसंग खेलते हैं। उन दो के बीच निष्पादित रसों का स्थायी भाव प्रेम, मित्रता या मसखरी या कुछ और था ये जानना भी उसकी रूचि न था। मगर अचानक कभी-कभी उसका जी चाहता कि अपने फोन की प्ले लिस्ट को सर्फ करे। अपने गले के पास कॉलर से लटके ईयरफोन को छुए। *** हाँ ठीक है। अच्छा। ओके। कब। ओह। ऐसा क्यों। हूँ। हाँ-हाँ। इसी तरह की बातें करते हुए उसकी अंगुलियां ईयरफोन के सफ़ेद लंबे तार से खेल रही थी। आखिर में उसने कहा- हाँ लव यू टू। फोन कटने के ज़रा देर बाद उसने देखा कि ईयरफोन के तार में अनगिनत गांठे पड़ चुकी थी। मौसम में गरमी बहुत ज्यादा थी और तन्हाई पहले जितनी लौट आई। *** एक रोज़ बच्चे ने पूछा- क्या थोड़ी देर के लिए आपका ईयरफोन मिल सकता है। उसने थोड़ी देर

ओ मुसाफिर ! ये बस पीले और टूटे पत्ते भर हैं

हसरतों के पत्ते पीले होकर गिरते रहते हैं। मुसाफ़िर रफ़ू की हुई झोली में सकेरता जाता है। सफ़ेद फूलों वाला कम उम्र दरख़्त कहता है- मेरे कोरे पीले और टूटे पत्ते ही तुम्हारे हिस्से में आते हैं। तुम ऊब नहीं जाते। क्या तुमको थकान नहीं होती। मुसाफ़िर मुस्कुराता है। जाना तुम्हारी छाँव के साथ प्रेम बरसता है। ज़िन्दगी की तल्खी में नरमाई उतरती है। इसमें डूबे हुए कभी लगता नहीं कि पीले पत्ते सकेर रहा हूँ। लगता है, तुम थोड़ा-थोड़ा मेरे हिस्से में आ रहे हो। शाम गुज़र गयी। कोई तन्हाई आई। कोई खालीपन उतरा। कोई आवाज़ दूर हुई। इसे भरने के लिए यादों का कारवां चला आया। उड़ता-गरजता और सब तरफ से घेरता हुआ। कोई याद का चश्मा नुमाया हुआ। हल्के छींटे बरस-बरस कर बिखरते गए। भीगा लिबास ज़िन्दगी का। याद होने की, जीने की, रूमान की। जाना, कहो तो। हम जैसे हैं क्या हम पहले से बने हुए थे या हम ख़ुद बने। बोलो, कुछ उसी तरह जैसे भरी-भरी आँखें जवां दोपहर को कह रही थी- ये सुख है। आत्मा खुश है। दुनिया से कह दो- आगे जाता हुआ पहिया ज़रा देर रोक लो। दूसरी ओर आमीन, आमीन। 

न ऊब न प्रतीक्षा

शब्द अपने अर्थ के साथ सम्मुख रखे हुए किस काम के, जब तक वे स्वयं उद् घाटित होकर भीतर प्रवेश करने को आमंत्रित न करते हों। April 29 जाना, आग के फूल न बरसते, बारिशों के फाहे गिरते तो रेगिस्तान क्या रेगिस्तान होता। उदास ही सही, ज़िन्दगी सुन्दर चीज़ है। क्या तुम्हारे पास कोई ऐसी कहानी है। ज़िंदा शहतूत के तने में नुकीले दांतों वाले मकोड़ों ने घर बना लिया हो। लाल चींटियों ने चाक कर दिए हों पत्ते। बकरियां दो पंजों पर खड़ी होकर जितना चर सकती थीं चर गयी हों। बच्चों ने टहनियों की लचक की सीमा से आगे जाकर तोड़ दिया हो। पेड़ के मालिक ने काले-लाल और कच्चे हरे शहतूत, कुछ तोड़ लिए कुछ मसल दिए। और वो जो शहतूत का कीड़ा होता है उसकी भी कोई बात शामिल हो। April 28 तुम एक पिरोये हुए फूल हो। दिल बेवकूफ़, अपने ठिकाने पड़े रहो। अतीत की जाली छनकर गिरने नहीं देती, फटकती रहती है भविष्य की ओर उछाल-उछाल कर। अचानक किसी दोपहर हम खुद को पाएं खाली पड़े हुए पुराने प्याले की तरह। नमी, नाज़ुकी, ज़िन्दगी जैसा कुछ न बचा हो। बस हम पड़े हों बिना हरकत, बिना जान के। तो.... अभी-अभी एक सूखा पत्ता गली से दौड़ता हुआ गुज़रा