Posts

Showing posts from October, 2014

बेशकीमती चिट्ठी - मलयालम में अनुवाद

Image
ये ठीक बात है कि मैं हिंदी पढ़ना चाहता था. मैंने साहित्य में स्नातक किया. मेरे मन में लेखक होने के प्रति गहरा चाव था. इस सबके बावजूद मैंने कभी लेखन को गंभीरता से नहीं लिया था. मैं अपनी आरामपसंद ज़िंदगी का ही दीवाना रहा. मैंने कम सुविधाओं में अपने मन का पोषण किया. जो मिला वह पढ़ लिया. मजदूरों के साथ रेलियां कीं. छात्रों के साथ हड़तालें की. तेईस बरस की उम्र से रेडियो में नौकरी करने लगा. नौकरी करते, शराब पीते, खूबसूरत ख्वाब देखते और घर बनाते हुए बीतता गया.  फिर अचानक लिखना शुरू हुआ. आंधी का कोई बीज था और फूट पड़ा. बूँद में समाया हुआ दरिया था बह निकला. हाथ से फिसल कर वक्त की अँधेरी सतह के नीचे गिरे हुए अक्षर थे, अपने आप उगने लगे. सब कुछ अचानक, दफ़अतन, सडनली. नौजवान होने के जो दिन थे, वे शहरों में घूमते, दोस्तों से कवितायेँ सुनते, सिगरेट के धुंए भरे कमरे और छतों पर शामें बिताते, गाँव के स्कूलों के बच्चों से बातें करते और किसानों से उनके अनुभव सुनते हुए बीते थे मगर जो कहानियां लिखीं वे सब नाकाम मोहब्बत की कहानियां निकली. अक्सर भाग जाता था. चुप्पी की गहरी छायाओं में खो जात

घने साये दार पेड़ों का पता

Image
जब पागलपन, मोड़ लेती किसी जवाँ नदी की तरह उफान लेता हो तो इसे हर जुबां में कुछ तो कहा जाता ही होगा. असल में मगर देखो तो धूल उड़ती ही जाये और कच्चे रास्ते से गुज़रते रेवड़ की तरह बेचैनी की पूँछ न दिखाई दे. बिना किसी दुःख के ज़िंदगी बोझ सी हो जाये. न ठहरे न गुज़रे. ज़रा हलके उठे-उठे क़दमों के लिए कोई हलकी शराब, ज़रा खुशी के लिए किसी की नरम नाज़ुक अंगुलियां और गहरे सुख के लिए बिना किसी रिश्ते वाले माशूक के साथ कोई गुनाह, कोई दिलकशी, कोई सुकून... पागलपन में मुझे कल दोपहर से रंगीन पत्थर सूझ रहे हैं. मैं बेहिसाब रंगीन पत्थरों से भर गया हूँ. मेरी कलाइयों में बंधे, मेरे गले में झूलते पत्थर... पत्थर मौसम का पता देते हैं. सर्द दिनों में ठन्डे गर्म दिनों में तपिश भरे. जैसे किसी नाज़ुक बदन की पसीने से भीगी पीठ, नीम बुझे शोलों जैसे होठ. पागलपन असल में तेज़ रफ़्तार तलाश है. खुद में खुद को खोजो कि किसी और में खुद को खोजो. पागलपन की नदी में दीवानों की नाव, सुख से तैरती... * * * ख़ानाबदोशों के घर उनके लोकगीतों में बसे होते हैं। उनके सफ़र की सुराही अनुभव के तरल से भरी होती है। ठहरा हुआ पानी पीने से पहल