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Showing posts from April, 2014

ये जो आंसू अभी टपक पड़ा है, ये क्या है?

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कुर्बानियां बेकार नहीं जानी चाहिए. हमारे पुरखों ने देश को आज़ाद करवाने के लिए असंख्य कुर्बानियां दी थी. उनका ये बलिदान आज़ादी के लिए था. आज़ादी अच्छी और बड़ी कीमती चीज़ होती है. हम आज़ाद हुए तो हमें इस अच्छी चीज़ का फायदा उठाना ही चाहिए. पहले औद्योगिक घरानों ने फिर नेताओं ने और फिर नौकरशाहों ने इसका फायदा उठाया. साठ साल बीतते - बीतते ये फायदा बीडीओ से होता हुआ ग्राम सेवक तक आया. सत्तानशीं नेताओं से ग्राम सरपंचों तक आया. हर कोई आज़ादी के जश्न में डूबा हुआ आज़ादी का फायदा इस तरह उठाने लगा कि आज़ादी को निचोड़ कर सुखा दिया जाये. जैसे अफीम पोस्त का सेवन करने वाले चूरे को कूट - कूट कर छान - छान कर निचोड़ लेते हैं. बचे हुए नाकाम बुरादे को भी खाद के लिए रख लेते हैं उसी तरह देश में आज़ादी को निचोड़ा जा रहा था. मेरा भीखू महात्रे रेगिस्तान की इन गलियों में राज्य सेवा में ग्राम सेवक की नौकरी करते हुए इस निचोड़ सिस्टम की सबसे खराब कड़ी निकला. इस कारण वह खुद भी निचोड़ा जा रहा था. जिस गाँव में ग्राम सेवक था वहाँ के सरपंच ने उसे अफीम सेवन को उकसाया और इस नशे में घेर लिया. पंचायत के काम काज का हाल ऐसा हो गया कि ब

इस दुनिया का अकेला नागरिक

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क़स्बा अरावली से बिछुड़े हुए छोटे से टुकड़े की गोद में बसा हुआ था. सर्द हवाओं से ओट लेता हुआ और गरम हवाओं की आमद के इंतज़ार में. ढाणी बाज़ार से लेकर फकीरों के कुएं तक. इस सीधी रेखा के नीचे निम्नतर जाति के लोगों के लिए एक छोटी सी बसावट थी. कस्बे से बाहर और उपेक्षित. कालांतर में वह बसावट कस्बे के ह्रदय में आ गई. ऊपर गढ़ मंदिर था. उसके नीचे इस सूखे रेगिस्तान के इकलौते रावल का पहाड़ी के अधबीच बना मकान था. हम मंदिर जाते तब उस मकान के भीतर देखना चाहते थे कि वहाँ कौन रहता है. लेकिन सीमेंट के फर्श वाले, सामान्य दीवारों वाले उस घर का सम्मोहन बस इतना भर था कि वह शहर से ऊपर और पहाड़ी के ठीक अधबीच में बना हुआ था. इसी पहाड़ी पर इस घर के नीचे कुछ फासले पर कुछ और घर थे. वे छोटे सरदारों के लिए होते होंगे. पहाड़ी की उपत्यका में जोशियों और जैनियों के बास थे. इन्हीं के पास प्रसिद्द नरगासर के चारों और बसे हुए खत्री थे. ये अपने आपको ब्रह्म क्षत्रीय मानते हैं. स्कूलों में होने वाली लड़ाइयों में कई बार कुछ बदमाश खत्री लड़के ये साबित करने कि कोशिश करते थे कि वे ब्रह्म ही सही मगर क्षत्रीय हैं. लेकिन क्षत्रीय होना ही कष

एक साबुत रुदन कितना होता है?

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समयमापी की एक टिक के बीच का फासला कितना होता है? बेआवाज़ हल्का स्याह, तेज़ उजला, धूसर मटमैला, सिंदूरी या उदित गुलाबी रंग का बढता हुआ कुछ, जो गुज़रता है बिना छुए. जिसके साथ खिलता है फूल और जिसकी जद में बिखरती है फूल की एक एक पंखुड़ी. एक साँस से दूसरी के बीच का फासला उससे अलग होता है जितना कि एक टिक के बीच का फासला होता है. जो बनाता है उसका मिटाना कितना होता है? मेरा मन कच्ची शराब का कारखाना है. तेज़ गंध वाली, तीखी और गले की नसों को चीरने की तरह चूमती हुई उतरती शराब बुनता है. ये शराब उदासी के सीले रूई पर तेज़ाब की तरह गिरती है. एक धुआँ सा उठता है. इस कोरे ख़याल में मन खो जाता है कि उदासी खत्म हो रही है. जल रहा है सब कुछ जो ठहरा हुआ और भारी था. जिसके बोझ तले सांस नहीं आती थी. एक जादूगर के पास अपने दुखों के लिए कितना उपचार होता है? मेरा मन एक जादूगर का थैला है. मैं उसमें से शराबी खरगोश निकालता हूँ. शराबी खरगोश के फर से बन जाती है एक नन्ही बुगची. उसमें रखा जा सकता है इस भुलावे को कि खरगोश ज़िंदा है. उसी में से निकालता हूँ एक भालू का नाखून. जंगल के सारे पेड़ खरोंच कर जो बच गया ह