Posts

Showing posts from April, 2012

आओ, बैठो इस पास वाले स्टूल पर

Image
आदमी को अब फर्क मालूम नहीं होता, उसके चहरे पर नहीं आती ख़ुशी और चिंता की लकीरें कि दुनिया में मुर्दा सीरत वाले ईश्वर ही बचे हैं.  मगर भूलो नहीं की हमें यहाँ तक अंगुली पकड़ कर कोई नहीं लाया था, ज़रा पिछली गली में देखो. हमारे क़दमों के साझा निशान बचे हुए हैं... ज़िन्दगी की दुकान खुली हो तो फ़र्ज़ है कि बाज़ार से गुज़रे को उम्मीद से देखें. आप ज़रा ज्यादा पहचान की हैं तो सोचा कि कहूँ आओ, बैठो इस पास वाले स्टूल पर मिल कर उम्मीद करते हैं सूरज के डूबने से पहले बोहनी हो जाये. कि अब तक इसी तरह ज़िन्दगी बसर करने की आदत है मुझको. जब तक आता है कोई बताओ उस लड़के के बारे में जिसे आपसे बिछड़ने में लगता था डर और यकीनन आप कहेंगी कि शहर बस गए हैं दूर दूर तक मगर केक्टस की नस्लें भी हो गई है बेशुमार. मेरी ज़िन्दगी के बारे में न पूछना मैं उस जायरीन की बात दोहराऊंगा कि दादा अमरुदीन की दरगाह तक आने में जिनको उठानी पड़ती है तकलीफें ख़ुदा उन्हीं का हमराह होता है. और फिर सुख के लिए छींके में पुराने अंडे की तरह लटके रहना भी कोई ज़िन्दगी है. कभी उठाना चाहिए कौ़म के लिए भी हमें, अपना

ज़िन्दगी का हाथ बड़ा तंग है...

Image
उन दिनों सबसे अधिक चाहतें थी. सब जल्दी बड़े होने के ख्वाब देखते थे. बूढ़े लोग करते थे दुआ कि ये कुछ और सालों तक बच्चे बने रह सकें. कमसिन उम्र की कल्पनाओं के पंख ज़मीन से बड़े थे. उनको जीने के लिए नहीं चाहिए थी खाली जगह और वे सामान्य दिनों को बिता सकते थे, महान दिन की तरह. ये आज की तरह सिर्फ़ ख़ुद को बचाए रखने की जुगत में लगा जीवन न था, उन दिनों बड़े हो जाने के लिए समय ख़ुद उकसाता था. लेकिन हम कभी बड़े नहीं होते सिर्फ़ खुरदरे होते जाते हैं. एक बेवजह की बात है, जो कई सारी बातों से मिल कर बनी है.  दरअसल जो नहीं होता, वही होता है सबसे ख़ूबसूरत जैसे घर से भाग जाने का ख़याल जब न हो मालूम कि जाना है कहां. लम्बी उम्र में कुछ भी अच्छा नहीं होता ख़ूबसूरत होती है वो रात, जो कहती है, न जाओ अभी. ख़ूबसूरत होता है दीवार को कहना, देख मेरी आँख में आंसू हैं और इनको पौंछ न सकेगा कोई कि उसने जो बख्शी है मुझे, उस ज़िन्दगी का हाथ बड़ा तंग है. कि जो नहीं होता, वही होता है सबसे ख़ूबसूरत.  * * * [Painting image courtesy : Lorna Millar]

गठरी में भरी अकूत कल्पनाएँ...

Image
कुछ बातें मिट्टी से इश्क़, वतन के ख़याल और ईश्वर के बारे में. वह ईश्वर, जो हमारी कैद आत्मा पर रखी हुई काली परछाई मात्र है. बाकी महबूब सबसे हसीन है, वह सदा कमसिन है. बाँहों से फिसलता हुआ, सताता जाता है. हम फिर लौट कर उसी महबूब की गोद में सर रख कर आँखें मूँद लेते हैं.. यानि सब कुछ बेतरतीब है, ओरण के किसी पेड़ की छाँव में अनगढ़ गीत गाते लड़के की तरह गिरजे का ख़याल आते ही देख पाता हूँ एक अटारी और उसके अंदर बंधी हुई घंटी. तुम्हारे बारे में सोचता हूँ तो बेहिसाब ख़यालों की पतंग उड़ती है दूर दूर तक ईश्वर के खेतों में. * * * ईश्वर एक मूर्ख अध्यापक है अपनी ही भूलों को दुरस्त करने के लिए डूबा रहता है नरक और स्वर्ग के फरेब में. * * * रात की हर घड़ी मेरे साथ सोये रहते हैं, ईमान और कुफ़्र तुम्हारी याद आते ही मैं ईमान को धकेल देना चाहता हूँ, पलंग से नीचे, मुझे नफ़रत है भौतिक चीज़ों से भी कि उस वक्त तारों को देखने वाली दूरबीन से नहीं की जा सकती कल्पना, प्रेम के आकार की. * * * उन मुखौटों को बाद हमारे भी किया जायेगा याद जो मुरत्तिब को भूल सके. जिन्होंने अपनी आत्मा से प

तूं सोया रह सकता है, उसके साथ...

Image
कुछ ख़ुद को दी हुई सलाहें हैं बाकी ख़यालों के नक़्शे पर उभर आई उम्मीदों पर पड़े हुए दाग़ हैं. एक तूं हो नहीं सकता और तेरे सिवा कुछ भी नहीं... रसायन के नियम सब जगह नहीं आते काम दिल के कीमियागर सब चीज़ों को बदल देते हैं, अफ़सोस में. * * * दिल इतना बुद्धू है कि हर वक़्त अहमक़ी दुनिया पर फ़ाश करना चाहता है, अपना राज़. * * * वीराने की ओर लौटता हुआ तूफ़ान होता है आदमी. दिल के धड़कते ही चढ़ता है आसमान में दिल के टूटते ही उतर आता है ज़मीन पर. * * * पी लो थोड़ी सी और गर बढ़ गया हो सवालों का बोझ चलो लड़खड़ाते यूं कि लगे आहिस्ता नाच रहे हो तुम कहो महबूब से कि तूं सोया रह सकता है, उसके साथ. यूं एक बच्चे की तरह हैरत से देखता है क्या, उम्र के इस मोड़ पर सोचता है क्या? * * * [Painting image courtesy : Judith Cheng]

एक लड़की की कहानी

Image
कहानी कहना एक अच्छा काम है. मैं कुछ सालों तक लगातार ड्राफ्ट तैयार करता रहा फिर अचानक से सिलसिला रुक गया और मैं अपने जाती मामलों में उलझ कर कुछ बेवजह की बातें लिखने लगा. मुझे यकीन है कि मैं एक दिन अच्छी कहानी लिखने लगूंगा... मेरा समय लौट आएगा. कुछ एक मित्रों के अनुरोध पर अपनी आवाज़ में एक कहानी यहाँ टांग रहा हूँ. इस कहानी को रिकार्ड करने के दौरान किसी भी इफेक्ट का उपयोग नहीं किया है कि आवाज़ अपने आप में एक इफेक्ट होती है... खैर किसी भी तरह का बैकग्राउंड म्यूजिक नहीं है, सिर्फ आवाज़... बिना कोई और बात किये, लीजिए सुनिए.

कहीं नहीं है, कोई...

Image
दिन का डेढ़ बजा था, कुछ देर और बात की जा सकती थी. लेकिन जो बातें होती, वे शायद मुझे रोक कर नहीं रख पाती. दोपहर ज्यादा गरम नहीं थी. बरसों से चालीस के ऊपर की गरमी में जीने की आदत है. तो क्या करूं? कोई काम नहीं था. मुझे शाम पांच बजे से दस मिनट पहले तक स्टूडियो में होना चाहिए था. उससे पहले ये कोई तीन घंटे... बहुत नहीं होते हैं तीन घंटे मगर कई बार कुछ लम्हे भी शायद कट न सकें किसी भी आरी से. घर के पहले माले की सीढ़ियों से उतरते हुए सोचता हूँ कि क्या बुरा है अगर अभी चला जाऊं दफ्तर. मैं कुछ डबिंग का काम कर लूँगा. चलो उठ जाता हूँ... फिर जाने क्या सोचता हुआ पलंग का सहारा लिए बैठा रहता हूँ. एक बार देखूं क्या? नहीं... क्या कहूँगा कि शाम हसीन हो, रात अच्छी बीते. वैसे भी हर हाल में फूल मुरझाते जाते हैं और सब आबाद रहता है. आज का एक दिन और डूब जायेगा. अच्छा, आज पिजन बॉक्स में कुछ न मिलेगा. परसों रात सब ख़त्म. बची हुई कुछ बूँदें भी न होगी. एक घंटा बीत गया है, अभी कहीं नहीं गया हूँ. फर्श पर बैठा हुआ ऑफिस के बारे में सोचता हूँ कि कितना अच्छा होगा. शाम के सात बजने के बाद डूबते सूरज का हल्क