उम्र भर यूं ही...

नीम के दो पेड़ों के आगे की दीवार पर फैली हुई बोगेनवेलिया की टहनियों पर खिल रहे, रानी और गुलाबी रंग के फूलों पर शाम आहिस्ता से उतर रही होगी. मैंने स्टूडियो के भीतर टेप लाईब्रेरी में बैठे हुए सोचा. कोने वाली खिड़की से रौशनी की एक लकीर मेग्नेटिक टेप्स की कतार को छू रही थी. वहीं कुछ ततैये ऐसी की ठंडक के कारण आराम कर रहे थे. आहिस्ता से रौशनी की लकीर गायब हो गयी. ततैयों ने अपना पीला रंग कृष्ण को समर्पित कर दिया. मैं मगर एक घूम सकने वाली कुर्सी पर बैठा हुआ सोचता रहा कि जो शाम आई थी, वह चली गयी है. 

आपको वक़्त नहीं है मुझसे बात करने का... सेल फोन पर दर्ज़ इस शिकायत को पढ़ कर आँखें बंद कर ली. अट्ठारह साल तक अलग अलग शहरों में रेडियो के एक जैसे दफ्तरों में ज़िन्दगी के टुकड़े टूट कर गिरते गए हैं.   मैंने अपनी जेब में एक हाथ रखे हुए कुर्सी को ज़रा और झुका कर सामने रखे ग्रामोफोन रिकोर्ड्स की तरफ देखते हुए चाहा कि काश कोई आये और नीचे से तीसरे कॉलम का पहला रिकार्ड प्ले कर दे. कोई आया नहीं बस एक साया सा लाईब्रेरी के दरवाज़े में लगे कांच के छोटे से टुकड़े के भीतर झांक कर आगे बढ़ गया. 
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घर की छत पर आधे चाँद की रात थी मगर चाँद को आना बाकी था. मैंने अपने प्यालों को कुछ बे-मुहब्बत बोसे दिए. कई बार अपने सेल फोन पर हाथ रखा. कई बार किसी नाम का पहला अक्षर सोचा और आखिर रात के बारह बजे आधी नींद में किसी सूखे हुए दरिया की रेत पर चलने लगा. नीचे गली में कुछ घर दूर कच्ची शराब की महक के बीच गफूर खाँ ने एक छोटे से आलाप के बाद लोकगीत का पहला बंद शुरू किया. मांड गायिका रुकमा के बेटे के गले में भी वही आवाज़, वही सघनता. मेरे आधी नींद के सपने के साथ सुर घुल मिल गए. 

आभा ने मेरे हाथ को छूना चाहा. वह पूछना चाहती थी कि गफूर के साथ ये नया फ़नकार कौन है. मैं सो रहा था और वह पीतल की सबसे छोटी वाली बांसुरी बजा रहा था. सितम्बर महीना डूबने को था. हवा में ठंडक थी. आवाज़ की लहर दूर तक फेरा लगा रही थी. उसने सीधी करवट लेते हुए अपने हाथ एक दूसरे के ऊपर रख लिए. बांसुरी से निकल रहे सुरों के साथ उसके आस पास महबूब, खय्याम, साहिर और मुकेश जैसे कितने ही साहिब लोगों के चहरे हवा में तैरने लगे होंगे. अमिताभ और राखी का भी कोई अक्स याद आया होगा.  

आधी रात जा चुकी थी. चाँद निकल आया था. मैं नींद में सूखे दरिया की रेत पर चला जा रहा था मगर वह सुन रही थी, कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है...
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सुबह आभा ने पहली ही बात कही. रात को आपने उस बांसुरी वाले को सुना. मैंने कहा. नहीं, मैं किसी ख़्वाब में खो गया था. आभा ने फिर पूछा. आपको मालूम है कि वह बांसुरी वाला लड़का कौन है? मैंने कहा. नहीं मालूम, मगर होगा कोई ज़िन्दगी के प्याले को दौलत और शोहरत की जगह शराब से भरे हुए... या शायद किसी की शिकायतों का जवाब न पाकर साहिर के नगमे गाने वाला.


[Painting Image courtesy Vishal Misra]