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जी ढूँढता है घर कोई दोनों जहां से दूर

क्रश का फिर से मुझ पर टूट पड़ना

साहेब, इंडिया ले चलो

वाह वाह गुज़रा फ़कीरां दा...

के वतन बदर हों हम तुम

आबूझ राजा राज करे...

दफ़अतन शैतान की प्रेमिका का आना

गोली मार दो, क्या रखा है?

वो एक तस्वीर थी

न आओगे मगर सुना है

निर्मल रेत की चादर पर

तुम्हारा नाम, किसी तितली की तरह

रात का एक बजा है

किसी हादसे की तरह

जीने के लिए

कहाँ है वो माफ़ीनामा

एक लंबी और बेवजह की बात : हमारी दिल्ली

सब अँधेरों के एकांत से परे

पत्थर के दरीचों से

बेख़बरी है कि मेरी रुसवाई

तुम भी कब तक

उम्र भर यूं ही...

यही रोज़गार बचा है मेरे पास

आभा का घर

तुम्हारे लिए

फिर से आना जरुरी है

शगुफ्ता शगुफ्ता बहाने तेरे