Posts

Showing posts from May, 2010

खूबसूरत लड़की, तीस डिग्री पर खिला चाँद और कुछ यादें

सुबह आठ बजे उठा था . उसके बाद दिन जाने किन ख़यालों में बीता , याद नहीं . आँधियाँ मेरे यहाँ मुहब्बत की राहत की तरह बरसती है . विरह का तापमान कुछ एक डिग्री गिर जाया करता है फिर मैं मुहब्बत की सौगात फाइन डस्ट को पौंछता फिरता हूँ . फाइन डस्ट से कुछ भी अछूता नहीं छूटता जैसे प्रेम अपने लिए जगह बनाता हुआ हर कहीं छा जाता है . घर में अकेला हूँ इसलिए कल दिन भर डस्टिंग और झाडू पौचा करता रहा तो आज थका हुआ था . दिन के अकेले पन में किसी और राहत के बरसने की उम्मीद कम ही थी मगर मिरेकल्स होते हैं , आज मैंने अपने घर के दरवाजे पर एक बेहद खूबसूरत लड़की को देखा , उसने क्या कहा अब याद नहीं मगर उसका चेहरा ... इस समय पूरब में तीस डिग्री ऊंचाई पर खिले हुए चाँद से अधिक सुन्दर था . आज मौसम भी कमबख्त पुरानी दुआओं सा था. तन्हाई और यादें... एक इन्सान हुआ करते थे , जो दिल से कहते थे , अब कोई अवतार नहीं होने वाला कोई मसीहा नहीं आने वाला यानि जागो और अपनी तकदीर खुद लिखो . आज क

आओ पी के सो जाएं, महंगाई गयी तेल लेने

कहिये ! प्रधानमंत्री जी आपको एक सवाल पूछने की अनुमति दें तो आप क्या पूछेंगे ? सवाल सुन कर कभी कोई खुश नहीं होता क्योंकि सवाल हमेशा असहज करते हैं। वे कहीं से बराबरी का अहसास कराते हैं और सवाल पूछने वाले को कभी-कभी लगता है कि उसका होना जायज है. २४ मई को ऐसा मौका था कि अमेरिका के राष्ट्रपति ने जिस देश को गुरु कह कर संबोधित किया है, उस देश के प्रधानमंत्री चुनिन्दा कलम और विवेक के धनी राष्ट्र के सिरमौर पत्रकारों के समक्ष उपस्थित थे. प्रेस कांफ्रेंस में तिरेपन पत्रकारों ने सवाल पूछे, आठ महिला पत्रकार बाकी सब पुरुष. एक सवाल सुमित अवस्थी ने पूछा जिसका आशय था कि "आप गुरशरण कौर की मानते हैं या सोनिया गाँधी की?" इस बेहूदा सवाल पर हाल में हंसी गूंजी, मगर सुमित के सवाल पर मुझे अफ़सोस हुआ. इसलिए नहीं कि ये निजी और राजनीति से जुड़ा, एक मशहूर मसखरा विषय है. इसलिए कि जिस देश पर आबादी का बोझ इस कदर बढ़ा हुआ कि देश कभी भी ज़मीन पकड़ सकता है. मंहगाई ने असुरी शक्ति पा ली है और उसका कद बढ़ता ही जा रहा है. वैश्विक दबाव के कारण मुद्रास्फीति पर कोई नियंत्रण नहीं हो पा रहा है. उस देश के प्रधानमंत्री जब

दोस्त ज़ोर्ज, एक मास्टर कवि ने तुम्हारी याद दिला दी

अमेरिकी प्रशासन ने पिछले साल सब नियोक्ताओं से आग्रह किया था कि वे अपने अधिकारियों को निर्देश दें कि फेसबुक पर कम से कम जानकारी सार्वजनिक करें, मुझे लगा कि अमेरिकी प्रशासन की फट रही थी लेकिन दो दिन पहले एक मास्टर कवि मेरे फेसबुक एकाउंट पर आकर 'टाबर समझे खुद ने बाप बराबर' बता गए तो अब मेरी भी फट रही है. मेरे लिए राहत की बात ये है कि वे मेरे से उम्र में दस साल बड़े है. इस बहाने से मैंने बर्दाश्त करने का हौसला फिर से पा लिया. फेसबुक पर एक ऑप्शन है कि वह अपने सदस्यों को मित्र सुझाने की सुविधा देता है तो मेरे पिताजी के एक मित्र जो वरिष्ठ साहित्यकार हैं और दूरदर्शन के बड़े पद से सेवा निवृत हुए हैं, उन्होंने मुझे सुझाया कि इन्हें आप अपना मित्र बना सकते हैं. उनके सुझाव को मानने के बाद अब सोचता हूँ कि यार इससे तो अच्छा था कि इथोपिया में पैदा होते और लोगों की सहानुभूति के साथ मर जाते. रात नौ तीस पर छत पर आया था, चाँद ठीक ज्योमेट्री बक्से के चंदा जैसा था अनुमान हुआ कि आज सप्तमी के आस पास का कोई दिन होगा. कल मेरा एक मेहरबान ग्रीन लेबल की दो बोतल पहुंचा गया था. वैसे आप ठेके से

टिटहरी इस बार ऊंची जगह पर देना अंडे

गाँव बहुत दूर नहीं है बस हाथ और दिल जितनी ही दूरी है . पापा होते तो वे कल गाँव जाने के लिए अभी से ही तैयार हो चुके होते क्योंकि कल आखा तीज है . दुनिया भर में किसानों के त्यौहार फसल की बुवाई से ठीक पहले और कटाई के बाद आते हैं . हमारे यहाँ भी आखातीज बहुत बड़ा त्यौहार है , इसे दीपावली के समकक्ष रखा जाता है . हर साल इस दिन के लिए प्रशासनिक लवाजमा बाल विवाह रोकने के लिए कंट्रोल रूम बनता है , क्षेत्रवार विशेष दंडाधिकारियों की नियुक्ति करता है और पुलिस थानों के पास हर दम मुस्तेद रहने के आदेश होते हैं मगर फिर भी शादियों की धूम रहती है , कल भी बहुत से नन्हे - नन्हे बच्चे विवाह के बंधनों में बंध जायेगे . मेरी रूचि रेवाणों में यानि गाँव के लोगों की हर्षोल्लास से भरी बैठकों में सदा से ही बनी रही है . इस ख़ास दिन की शुरुआत हाली अमावस्या से होती है और हर घर में खीच पकना शुरू हो जाया करता है . घर के आँगन के बीच एक पत्थर की

भाजपा का हमला नहीं, ज्यादा खा चुकी बकरी के आफरे के बाद की मिंगणियां है

मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और उनके सिपहसालार विधायक रमेश मेन्दौला के कथित घोटालों के बारे में प्रकाशित खबरों के बाद राजस्थान पत्रिका समूह के अखबार 'पत्रिका' पर हमले किये जा रहे हैं . संसद में जयपुर के सांसद महेश जोशी ने इसे भाजपाई गुंडागर्दी कहते हुए इन हमलों के खिलाफ पुरजोर आवाज़ उठाई . पत्रिका के गुलाब कोठारी ने इसे भाजपा के भय से कांपती मथुरा का नाम दिया है . समाचार पत्रों पर फासीवादी हमले कोई नयी बात नहीं है . हमारे देश में इस तरह के हमले स्वतः स्फूर्त न हो कर सदा ही प्रायोजित होते हैं . दक्षिण के क्षेत्रीय दल हों या शिव सेना की परंपरा में उपजे महानगरीय उदंड समूह , सबने अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए इस तरह की ओछी हरकतें नियमित रूप से की है . मुझे याद नहीं आता कि इस तरह के हमलों के बाद पुलिस ने कोई उचित कदम उठाये होंगे . सर फूटे हुए पत्रकार फिर से अपने काम में जुट गए क्योंकि उनका प्रबंधन समाचार पत्र चल

स्त्री विमर्श की किंवदंती पाकिस्तान चली गयी, तनहा कवि अब दीवारों से सर फोड़ता होगा

कवि के लिए दो ख़िलाफ़त भरे शब्द कोई कह दे तो उसके चमचे कांव - कांव करते हुए सर पर मंडराने लगते हैं , यही एक कवि के सफल और महान होने की पुष्टि का एक मात्र तरीका भी है . मेरी एक परिचित ने जब दूज वर चुना तो मुझे पहले हेमा मालिनी से लेकर करिश्मा और फिर सानिया मिर्ज़ा के बहाने अनिल गंगल की एक कविता की याद आ गयी . वे कितने बड़े या छोटे कवि हैं ये बहस का विषय नहीं है , मुझे जो बात गुदगुदा रही है . वह है कि उन्होंने भारत की इस टेनिस खिलाड़ी के लिए कविता लिखी . इस कविता को हंस ने प्रकाशित किया . इस कविता के प्रथम पाठ पर मुझे याद आया कि हंस ने कई प्रतिभावान कवियों को रुलाया है . वह न सिर्फ उन्हें छापने से गुरेज करता रहा है बल्कि उनकी कविताओं को पाठकों के पत्रों के बीच प्रकाशित ( कर शर्मसार ) करता रहा है . इस पर हंस दावा ये भी करता है

जियें तो जहाँ में दिमित्रोफ़ होकर

कल का दिन बहुत उमस भरा था. मौसम में आर्द्रता बढ़ रही होगी वरना नम भीगी आँखों की नमी महसूस करने के दिन अब कहाँ है. ऐसे दिनों में ये बहुत पहले की बात नहीं है जब किसी राह से गुजरते हुए इंसान को उदास देख कर ही लोग उदास हो जाया करते थे. मन उन दिनों गीले थे. सूत के रंगीन धागों से बनी खूबसूरत बावड़ियों वाली चारपाइयों के पाए भी कद में कुछ ऊँचे हुआ करते थे. वे जाने किसके इंतजार में घर के बाहर बनी गुडाल ( मेहमानों का कमरा/विजिटर्स रूम) में आम चारपाइयों से अलग खड़ी ही रहा करती थी. मैं जब भी गाँव जाता, यही सोचता कि आखिर कब बिछेगी ये चारपाई ? मेरे कौतुहल का सबसे बड़ा प्रश्न रहता कि जिस चारपाई पर घर के सबसे बड़े इंसान को सोते हुए नहीं देखा उस पर जरूर कोई फ़रिश्ता कभी सोने के लिए आएगा. मेरे ताऊ जी जब मौज में होते तो अपनी सफ़ेद दाढ़ी बढ़ा लिया करते थे. उस फरहर सफ़ेद दाढी के बीच मूंछें इतनी पतली करवा लेते कि मुझे पांचवी की किताब में देखी गयी चीनी यात्री की तस्वीर याद आ जाती. खेती बाड़ी के बाद के दिनों में, उनके ढेरिये घूमते रहते और रंगीन सूत के सुंदर गोले बन जाते. उन गोलों को वे इतने प्यार