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Showing posts from February, 2010

1411 बाघ और 11 हिंदी चिट्ठा चिन्तक

कल रात को पीने के लिए वोदका का एक पैग ही बचा था। रूस की इस देसी शराब को मैं ज्यादा पसंद नहीं करता हूँ. आधी रात होते ही उतर जाया करती है फिर भांत - भांत के बेहूदा सपने देखते हुए सुबह हुआ करती है. आज विस्की के बारे में सोच रहा हूँ। चौदह सौ ग्यारह बाघ और सिर्फ ग्यारह हिंदी चिट्ठा चिन्तक ... ? कूट शब्द 1411 के तहत बाघ को समर्पित पोस्ट्स में ग्यारह प्रविष्ठियां दिख रही है। सोचता हूँ किसके बारे में चिंता की जाये ? बाघ या फिर उन के बारे में जो दिन में चार पोस्ट लिखते हैं और चेतना - चूतना की बातें किया करते हैं। जिन्होंने चिट्ठे को भी सोशियल नेटवर्किंग बना दिया है। बाघ मैं तुम्हारे लिए विस्की के दो पैग बचा कर रखते हुए, ये टुच्ची पोस्ट तुम्हें समर्पित करता हूँ. तुम दूर दूर तक घूमते हुए हर पेड़ पर अपने मूत की विशिष्ट गंध छाप लगा कर अपना इलाका चिन्हित करते रहो. घबराओ मत अपनी संख्या को लेकर विलुप्त तो डायनासोर और न जाने क्या क्या हो गए. आज अगर एक डायनासोर रात भर के लिए मेरा मेहमान हो

बाराती पीकर झूमें तो अच्छा है या सांसद को फोन करे तो ?

मेंबर पार्लियामेंट को रात बारह बजे के बाद एक पिया हुआ मतदाता फोन करके यह कहे कि आपकी याद आ रही थी. उसको कैसा फील हुआ होगा ? मौसम में ख़ास तब्दीली नहीं थी ठंडी हवा चल रही थी। अहमदाबाद जाने वाले हाईवे के पास नयी आबादी में चहल पहल थी. १६ फरवरी को शादी का बड़ा मुहूर्त था. आने वाले महीनों में कम ही सावे थे तो सब सेटल हो जाने की जल्दी में थे. एक साधारण सा दिखावटी कोट पहने हुए आप थोड़ा परेशान हो सकते हैं किन्तु कार में बैठ जाने के बाद वही कोट गरम अहसास देने लगता है. घर से दस गली के फासले पर खड़ी इस शादी में कौतुहल कुछ नहीं था. संचार क्रांति के बाद कोई ऐसी ख़ास प्रतीक्षित अनुभूति का रहस्य भरा रोमांच, दूल्हा - दुल्हन और बाराती - घरातियों में शायद ही बचा होगा. मुझे लगा कि ये तकनीक का अत्याचार है. इसी उधेड़बुन में मेरे सेल फोन ने सूचित किया कि तीसरी गली में एक कार खड़ी है जिसमे तीन लोग वेट ६९ कि बोतल के साथ इंतजार कर रहे हैं. ओह ! टेक टूल्स तुम भी कभी कितने काम आते हो. रात के ग्यारह बज कर चालीस मिनट पर चाँद आसमान के बीच था। शराब ला... शराब ला के नारे मन से उठते हुए झाड़ियों के तले फैले हुए अँधेरे में

स्फिंक्स, कई मौसम बीत गए हैं ढंग से पीये हुए.

जिन चीजों को आप सीधा रखना चाहते हैं वे अक्सर उल्टी गिरती हैं . आईने हमेशा खूबसूरत अक्स की जगह सिलवटों से भरा सदियों पुराना चेहरा दिखाया करते हैं. किस्मत को चमकाने वाले पत्थरों के रंग अँगुलियों में पहने पहने धुंधले हो गए हैं तो मैंने उन्हें ताक पर टांग दिया है . अफ़सोस ज़िन्दगी से ख़ास नहीं है . कुछ लम्हें तुम्हारे लिए रखे थे वे बासी हो गए हैं और कुछ आंसू पता नहीं किसके लिए हैं जो मेरी आँख से बहते रहते हैं . मेरा अधोपतन तीव्र गति से हो रहा है ऐसे संकेत मिल रहे हैं . पिछले साल दो बार ही " की बोर्ड " पर अंगुलियाँ चलाने का सामर्थ्य जुट पाया था . जिंदगी में जो बची हुई दोस्त थी . उनमे से एक से सम्मुख विवाद के बाद स्यापा मिट गया है और एक तर्के - ताल्लुक पर कब से ही आमादा है . जैसे दिन हैं शाम भी वैसी ही निकली. सा