खुद को धोखे देने की बीमारी, तुम्हारी याद और जिम मोरिसन

यातना भरे दो दिन सुलगते रहे। रात को बिजली की आड़ी तिरछी लकीर आकाश से उतरती और जाने किस पर गिरती। यहीं क्यों नहीं गिर जाती। ये मौसम ये गर्मी ये आर्द्रता और ये उसकी याद के साये। सरसराते हुये। 

स्मृतियों के बचे सामान पर कमबख्त समय नाम की दीमक भी नाकाम है। 

कोई हल नहीं होता कोई याद नहीं जाती। सत्रह साल पहले अक्सर वह छत पर लेटा हुआ आसंन देखता रहता था। कभी आसमान को देखते हुए उसकी सांसों को अपनी हथेलियों में कैद करने की कोशिशें करता। वह बाँहों पर अपने सर को रखे हुए मौन के तार बुनती रहती।

एक ऐसा ही नामुराद सपना उसने कल सुबह देखा।

सुबह की जाग के बाद खोया बैठा हुआ देखता है की सपना क्या है और वास्तविकता क्या है? उस सपने को हज़ार लानतें भेजता है। ऐसा नहीं है कि उसके ही ख़यालों में जीता है। हर दिन नयी ख्वाहिशों का दिन है। कुछ हसीन चेहरे और भी हैं, जो दिल के सुकून को काफी है। लेकिन सपने ने उसके पूरे दिन वहशी हवाओं में टूटते हुए कच्चे पेड़ों जैसा कर दिया था। 

हर आहट पर घबराता रहा। भरी-भरी आँखों के छलक जाने के डर से भागता रहा। उसकी सुवासित गेंहुआ देह से आती पसीने की गंध भूलने के लिए टीवी देखने लगा। अक्सर जाने क्यों कुदरत और जानवरों का चैनल लगाकर बैठ जाता था। वह कुछ और देखता ही नहीं था। इस दोपहर भी नॅशनल ज्योग्राफिक चेनल पर देखता रहा कि किस तरह मादा तेंदुआ घात लगाती है। कुछ चीखें जो मदांध युवा मृग के गले में दब कर रह गई।  उसे लगा कि वह एक मदांध मृग है। उसके दोनों हाथ अपनी गरदन तक चले गए।

होने और न होने के बीच के वीरान फासले में।  उसके साथ जुड़े अपने नाम को ही मुजरिम पाता। इसलिए उसे भूल जाने को। उस वीरान फासले को मिटा देने को। ख़ुद पर कई सितम किये। लेकिन एक सपना उन बरदाश्त तकलीफों को फिर से नाकाम कर गया। 

रात को पीने को नहीं मिली। रखी थी मगर पी नहीं सका। एक थका हुआ मन थकी देह से अधिक खराब होता है। इसलिए उसे सोते ही नींद आ गई। नयी सुबह में सपने के कारणों को तलाशता रहा। सवाल सिरहाने रखे रहे। काम पर नहीं गया। वह घर पर भी नहीं था, वह था भी ?

रात किसी ने पूछा कि कोई था ज़िन्दगी में जिसे याद करते हो? आज सोचने लगा तो खुद पर तरस आता रहा। वे बाँहें क्या थी। वे सीलन भरी दुपहरें क्यों थी। वे खुली रातें कहाँ चली गयी। अगर सब कुछ जा ही चुका है तो ये सपने क्यों हैं?

क्या कहीं लौटना है?

नहीं। नहीं। नहीं।

काश जेम्स डगलस मोरिसन जैसी बुलंदी भले ही ना पाता मगर उस की तरह मर जाता तो कितना अच्छा रहता। उसके तनहा बीते बचपन में गीत गाने का शऊर नहीं आया। उसकी स्मृतियों में भी नहीं था कि वह अपने पिता के गले में बाहें डाल कर झूल रहा है।

वह देह-सुवास से कई चेहरे अब भी बुन सकता था। जब भी तीन चार घूँट जब पी लेता सिर्फ उस वक्त वह ख़ुद को अपने पास पाता। अचानक उसी स्पर्श की कमी रेगिस्तान की तरह बढ़ने लगती। वह एक अलौकिक स्पर्श।  जब उसके स्पर्श का आभास नहीं होता तब वह सोचता कि आदमी के काम करने का समय सात आठ साल ही होना चाहिए। चंद खूबसूरत चेहरों के दिल में उतर जाने के बाद हेरोइन जैसे किसी मादक पदार्थ का भरपूर सेवन करके बाथ टब में ही मर जाना चाहिए वो भी पैंतीस साल की उम्र से पहले...

ओह जिम, तुम जिस फायर की अपेक्षा करते हो, वह उसी में तड़प रहा है। उसका कोई चाहने वाला उसके बारे में कुछ लिखना चाहेगा तो उससे कहना- "मेरी बायोग्राफी का नाम 'नो वन हियर गेट्स आउट अलाइव' से अलग कुछ ऐसा साउंड करे कि एक आदमी जो ख़ुद को धोखे देने की बीमारी से पीड़ित था."

तुम्हारा के।