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Showing posts from June, 2010

अलग किस्म की याद जैसे 'साही' की पीठ पर काला सफ़ेद तीर

घड़ी की पुरानी सुइयों जैसे टूटे फूटे पल. जिनमे तेरी खुशबू सुनाई देती, अब मंदिर की सीढ़ियों के किनारे लगे लेम्प पोस्टों में बदल गए हैं. शाम होते ही जलते बुझते रहते हैं. मेरी आँखें, उन्हें अपलक निहारने में कोई कष्ट नहीं पाती. वे पहाड़ी के विस्तार पर उन लम्हों की याद ताजा करने को अटकी रहती है, जब तुम्हें हर बार सायास कहीं से छू लिया करता था और तुम मुड़ कर नहीं देखती थी. उसी मुड़ कर न देखने से उपजने वाली मुहब्बत की फसल अब बरबाद हो चुकी है. धरती पर पहाड़, इंसान में प्रेम की तरह है. प्रेम और पहाड़ दुनिया में हर जगह पाए जाते हैं यहाँ तक की भयावह सूने रेगिस्तानों में भी, कहीं ऊँचे, कहीं चपटे और कहीं 'डेड ऐंड'. बस ऐसे ही हर कोई एक दिन उस डेड ऐंड पर खड़ा हुआ करता है. कुछ के हाथ में नरम भीगी अंगुलियाँ होती है जो आगे की गहराई को देख कर कसती जाती है और ज्यादातर मेरी तरह तनहा खड़े हो कर सोचते हैं कि अगर तुम यहाँ होती तो मेरी बाँह को थामे हुए इस गहराई को किस तरह देखती. मेरे पास बहुत कुछ बचा हुआ है. उसमे एक जोड़ी सेंडिल की तस्वीर भी है. किसी पहाड़ पर बने मंदिर के आगे आराम करने

स्त्री तुम सदा सुहागन रहो, अभी हमारे पास दूसरे काम हैं...

फैंव्किस बर्नियर विदेशी क्रिस्तान था और उसने शाहजहाँ के समय भारत में रहते हुए मुगलों की नौकरी की थी. उसने दुनिया भर में लम्बी यात्रायें की और सामाजिक जीवन को दर्ज किया. विकासशील किन्तु रुढियों से जकड़े हुए इस देश के लोगों को और खुद को देखता हूँ तो लगता है कि पांच सौ साल में भी अगर हम लिंग भेद और सामाजिक बराबरी का सफ़र तय नहीं कर पाए हैं तो आगे भी क्या उम्मीद हो ? बर्नियर ने अपनी भारत यात्रा में लिखा था कि मैंने देखा एक बहुत बड़ा गड्ढा खोदा हुआ था और उसमे बहुत सी लकड़ियाँ चुनी हुई रखी थी. लकड़ियों के ऊपर एक मृत देह पड़ी है जिसके पास एक सुंदरी उसी लकड़ियों के ढेर पर बैठी हुई है चारों और से पांच ब्राहमण उस चिता में आग दे रहे है थे. पांच अधेड़ स्त्रियाँ जो अच्छे वस्त्र पहने थी एक दूसरे का हाथ पकड़ कर चिता के चारों और नाच रही थी और इन्हें देखने के लिए बहुत सी स्त्रियों और पुरुषों की भीड़ लगी थी. इस समय चिता में आग अच्छी जल रही थी क्योंकि उस पर बहुत सा तेल और घी डाल दिया गया था. मैंने देखा कि आग उस स्त्री के कपड़ों तक जिसमे सुगन्धित तेल, चन्दन और कस्तूरी आदि मली हुई थी - भली भा

खुद को धोखे देने की बीमारी, तुम्हारी याद और जिम मोरिसन

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यातना भरे दो दिन सुलगते रहे। रात को बिजली की आड़ी तिरछी लकीर आकाश से उतरती और जाने किस पर गिरती। यहीं क्यों नहीं गिर जाती। ये मौसम ये गर्मी ये आर्द्रता और ये उसकी याद के साये। सरसराते हुये।  स्मृतियों के बचे सामान पर कमबख्त समय नाम की दीमक भी नाकाम है।  कोई हल नहीं होता कोई याद नहीं जाती। सत्रह साल पहले अक्सर वह छत पर लेटा हुआ आसंन देखता रहता था। कभी आसमान को देखते हुए उसकी सांसों को अपनी हथेलियों में कैद करने की कोशिशें करता। वह बाँहों पर अपने सर को रखे हुए मौन के तार बुनती रहती। एक ऐसा ही नामुराद सपना उसने कल सुबह देखा। सुबह की जाग के बाद खोया बैठा हुआ देखता है की सपना क्या है और वास्तविकता क्या है? उस सपने को हज़ार लानतें भेजता है। ऐसा नहीं है कि उसके ही ख़यालों में जीता है। हर दिन नयी ख्वाहिशों का दिन है। कुछ हसीन चेहरे और भी हैं, जो दिल के सुकून को काफी है। लेकिन सपने ने उसके पूरे दिन वहशी हवाओं में टूटते हुए कच्चे पेड़ों जैसा कर दिया था।  हर आहट पर घबराता रहा। भरी-भरी आँखों के छलक जाने के डर से भागता रहा। उसकी सुवासित गेंहुआ देह से आती पसीने की गंध भूलने के लिए टीवी

कुछ बीती हुई शामों का हिसाब और एक अफ़सोस ?

अक्सर दीवारों पर उनके पते लिखे होते हैं जिनके मिलने की आस बाकी नहीं होती. महीनों और सालों तक मुड़ा-तुड़ा, पता लिखा बदरंग पन्ना किसी उम्मीद की तरह जेब में छुपाये घूमते रहते हैं मगर एक दिन कहीं खो जाया करता है. मेरी उलझनें, तुमसे हुई मुहोब्बत जैसी हो जाती है. यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि उसका होना जरूरी था या फ़िर ज़िन्दगी का गुज़ारा इस बे-पर की लगावट के बिना भी सम्भव होता. पिछले सप्ताह एक विवाह में शामिल होना था. एक रात बनोला जीमने के लिये और दूसरी रात प्रीतिभोज के नाम हो गई यानि अपनी कही जाने वाली शाम को कुछ और लोगों के साथ बांटना पड़ा. इधर एनडीए में पासिंग आउट परेड में शामिल हो कर बच्चे अपने भाई को ग्रेजुएट होने की डिग्री दिला लाये तो मेरी कुछ और शामें बच्चों के नाम हो गई. मेरे फ़ौजी को चालीस दिन की छुट्टी मिली है और वह इन दिनों को भरपूर एन्जोय करना चाहता है. आज शाम की गाड़ी से वह अपने दोस्तों के पास जोधाणें चला जायेगा. मेरी इन शामों में मदिरा का सुकून भरा सुख नहीं बरसा है. अभी फ्रीजर की आईस ट्रे को पानी से भर कर आया हूँ. सुबह एक दोस्त से बात की, वैसे हर रोज़ ही होती

तोन्या, चाईल्ड मोलेस्टेशन और मेरा विचलित विश्वास

तोन्या , अब तुम हर आरोप से बरी हो मगर तुम्हारे मुकदमे की राख से उड़ते हुए कई सवाल मेरी पेशानी की सलवटों को मैला कर जाते हैं . चाइल्ड मोलेस्टेशन और सेक्स अब्यूज के बाईस आरोपों से संभव था कि तुम्हें चार सौ साल की कैद की सजा सुना दी जाती . दुनिया के कई विचित्र या अतिसामान्य मुकदमों की फाइलों के साथ तुम्हारी भी गहरे भूरे रंग वाली फ़ाइल किसी न्यायालय के रिकार्ड रूम में रखी रहती और उसका अंत दीमकों के चाट जाने से होता मगर प्रस्तर - अरण्यों के निर्माण से सभ्य होने में जुटे लोगों के हाथ इस बार भी एक विद्रूप प्रश्न लगा है . इस पर बहुत बहस हो गयी कि पाश्चात्य देशों में छोटे बच्चों के पड़ौसियों , स्कूल के सहपाठियों और माता - पिता के परिचितों के यहाँ रात को सोने की परंपरा का हासिल क्या है ? इससे बच्चे किस तरह की दुनियादारी सीखते हैं या उनके पेरेंट्स को बच्चों की अनुपस्थिति में कितना खुला आकाश मिलता है ? हमने शिक्षित और विकसित होने का जो र